2/28/2008

बदले मौसम की भावनाएं, कुत्तों ने अंगड़ाई ले ली है...

फाल्गुन मास, फागुन महीना, ठंड की विदाई, गर्मी के आने की शुरुवात...कूल कूल महीना। न सर्दी न गर्मी। हर ओर एक मादकता। हर ओर एक मस्ती। इस बदलते मौसम में हर एक को अपने बचपन, किशोरपन के दिन याद आ जाते हैं। मैं भी इसी मस्ती, मौसम, मिजाज को याद करते हुए चली जा रही थी, आटो पकड़ने के लिए। एकदम से आवाज सुनाई पड़ी, क्या मौसम है जी....। बगल में देखा तो दो तीन लड़के पान की गुमटी के सामने बाइक खड़ी कर धीरे धीरे मुस्करा रहे थे, वे तीनों थोड़ी थोड़ी देर में मेरी तरफ देखते हुए फिर आपस में बातें करने व मुस्काने में जुट जा रहे थे।

मैं समझ गई। ये कुत्ते मुझी को टारगेट करके बोल रहे हैं। मुझसे रहा न गया। मुड़ गई। उनकी तरफ। वे तीनों ध्यान से मुझे देखने लगे। पहुंच गई पान की दुकान पर। वहां पान वाले से सीधे बोली....जरा सिगरेट का एक पैकेट देना। उसने कहा..जी मैडम। तीनों लड़के बिलकुल चुप। मैंने उनमें से एक से कहा....क्यों यार, मौसम बहुत बढ़िया है, है ना...!!! वो कुछ बोल न पाया....झेंपने लगा। दूसरे से मैंने पूछा.....क्यों भाई साहब, मौसम बहुत बढ़िया है, है ना....। वो भी निकल लिया......। मैंने पान वाले को पैसे देते हुए जोर से भुनभुनाई....इस मौसम में साले कुत्ते अंगड़ाई लेने लगते हैं.....इनकी टांगें तुड़वानी पड़़ेगी, हरामजादों की औलाद, गटर के कीड़े.....कुत्ते।

पीछे मुड़ी तो तीनों ही गायब। साले कुत्ते, इतने कमजोर निकले। तुम लोगों को तो पकड़ कर बधिया कर देना चाहिए.......।

गंदी

2/21/2008

साला कुत्ता समाज, ठीक कहा तसलीमा तूने....


फूलों की तरह सुंदर और पवित्र, यह उपमा अक्सर औरत के लिए प्रयोग में आती है. जो लड़की पुरुषों की तरफ आंख उठा कर नहीं देखती, छत पर नहीं जाती, कम हंसती हैं, पहनावे में सलीका, चलने फिरने में मंथर, धीमा कंठ में स्वर हो तो आम तौर पर उस लड़की को इस समाज में फूलों की तरह सुंदर और पवित्र कहा जाता है. पवित्रता का अर्थ है कि स्त्री को कोई पुरुष स्पर्श न करे, उसका कौमार्य भंग ना हुआ हो, विशेषकर किसी गैर मर्द द्वारा...
फूल की उपमा कभी किसी पुरुष को नहीं दी जाती है, सिर्फ स्त्री ही ओढ़कर बैठी है दुनिया के सारे फूलों का लबादा. फूल सुंदर होता है, सुगंध बिखेरता है और ठीक इसी तरह स्त्री को भी विभिन्न रंगों का होना पड़ता है. अगर वो ऐसी नहीं होगी तो ये समाज उसे नोच नोच कर, मसल कर फेंक देगा. गुलाब की पंखुड़ियों की तरह होंठ, भौंरे की तरह काली आंखे, गुलाबी गाल, घने काले रेशमी बाल, दूध और आलता मिश्रित या कच्ची हल्दी जैसी त्वचा, मोतियां की तरह सफेद दांत. लड़कियों की त्वचा और बालों से भीनी-भीनी खुशबू ना निकलने से लड़कियां शोभा नहीं देती. इसलिए घिस-मलकर बदन की दुर्गंध दूर करने के लिए प्रतिदिन नये नये साबुन बन रहे हैं. उन साबुनों से कोमल रमणियों के सौंदर्य की रक्षा करने का विज्ञापन भी दिया जा रहा है. विभिन्न तरह की सुगंधों से यह बाजार भर गया है. एक औरत को फूल की तरह सुंदर बनाने के लिए इतना जतन क्यों? ताकि मनुष्य रूपी पुरुष, फूल रूपी स्त्री की सुगंध लेता रहे और उसके विभिन्न रंगों में मुग्ध होता रहे? जिस प्रकार फूल किसी के तोड़े जाने पर मुर्झा जाता है, सूख जाता है, मर जाता है, ठीक उसी प्रकार किसी भी गैर पुरुष के छुए जाने पर स्त्री की पवित्रता मुरझा जाती है. वह समाज की नजरों में एक गंदी औरत घोषित हो जाती है. हमारे समाज में स्त्री वह सुगंधित पदार्थ है- जो एक ही साथ वर्ण और गंध से पुरुष को मुग्ध करती है, मोहित करती है, तुष्ट करती है और तृप्त करती है. क्या शरीर का सिर्फ एक ही हिस्सा उसके अच्छे बुरे की पहचान कराने के लिए काफी है. नहीं. बिल्कुल नहीं.
आज तक किसी पुरुष को इस तरह रंग, गंधयुक्त उपमा से अलंकृत नहीं किया गया. आज तक किसी स्त्री चित्रकार या मूर्तिकार ने पुरुष के शरीर को उस प्रकार विभिन्न भंगिमाओं में, रंगों और रेखाओं में अभिव्यक्त नहीं किया, जिस प्रकार पुरुष चित्रकारों और मूतिर्कारों ने स्त्री शरीर को लेकर तरह तरह की कल्पनाएं गढ़ीं. क्यों नहीं आज तक किसी स्त्री कवि या कथाकार ने पुरुष शरीर के अंगों प्रत्यंगों का वैसा लोभनीय वर्णन नहीं किया, जिस तरह पुरुष कवि या कथाकारों ने स्त्री के शरीर को लेकर किया? ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं कि पुरुष के प्रति स्त्री का आकर्षण कुछ कम है, बल्कि सिर्फ इसलिए क्योंकि यह एक स्त्री के लिए शर्मनाक विषय होगा, जो स्त्री को मोहमयी कर देगा. ये हमारे समाज का ढांचा है, जबकि ऐसा करने में कोई बुराई नहीं.
पुरुष के बाल, बाहु, वक्ष, नितंब देखकर नारी भी मुग्ध होती है, जिस प्रकार स्त्री के कुछ अंग पुरुषों की मुग्धता और कामना के कारण हैं. लेकिन स्त्री के मुग्ध भाव की कोई स्वतंत्र अभिव्यक्ति नहीं है- न हमारे इस बदबूदार समाज में और ना ही औरत को भोग की वस्तु मानने वाले इन साहित्यों में. शादी में लड़के के रिश्तेदार अच्छी तरह जांच परख कर लड़की लाते हैं. लड़ाका उसके रंग, दांत, बाल, आंखों, कद-काठी, कमर, नितंब, छाती सभी पर अपनी नजरें गड़ा गड़ा कर देखता. लेकिन लड़के को जांचने का नियम हमारे इस समाज में नहीं. इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि लड़के का शरीर किसी लड़की के लिए महत्वपूर्ण विषय नहीं. यह भी वह शर्मनाक विषय है, जो स्त्री नाम की एक बेहूदी चर्चा है. लड़की जन्म से ही स्त्री नहीं होती, हमारे समाज के बजबजाते नियम, कायदे व कानून उसे स्त्री बना देते हैं और उसकी पहचान सिर्फ बेटी, बहन, पत्नी और मां के रूप में होने लगती है.
फूल और फल के साथ स्त्री के अंगों की तुलना होती है. फूल और फल की उम्र बहुत कम होती है, सूंघने और खाने के बाद दोनों कूड़ेदान में फेंक दिये जाते हैं, उसी तरह स्त्री भी. स्त्री को खा-पीकर जूठन की तरह फेंक दिया जाता है. औरत चाहे जितनी भी बोल्ड, जितना भी पैसा क्यों न कमाती हो, लेकिन इस समाज में कोई ना कोई ऐसा पुरुष जरूर होता है जो उस पर अपना जन्मजात अधिकार समझता है, मानो वह उस साले के बाप की बपौती हो. यह समझाने के लिए मनुष्य नामक पुरुष को भी उसी कतार में उतार कर उसे भी फूल की उपमा देनी होगी या फिर औरत को अपने भीतर से शरीर के उस एक हिस्से का मोह छोड़ना होगा, जिसके होने से वह खुद को स्त्री समझती है. वह मोह ही उसे स्त्री बनाता है और वही मोह एक पुरुष को उस पर शासन करना सिखाता है.
जब औरत नरक का द्वार है, तो उसके कौमार्य की इतनी परवाह क्यों. जब औरत तुम पुरुषों से कोई सवाल नहीं करती, तो तुम क्यों जबरदस्ती उसके फटे में टांग अड़ाते हो?

2/20/2008

सिर्फ और सिर्फ पतन, कोई मूल्य वूल्य की शर्त न थोपो

चोखेरबाली ब्लाग पर एक मजेदार बहस चल रही है, कुछ कुछ गंदी लड़की की तरह ही। वहां पतित होने की बात की जा रही है। बाद में जाने किस भय से पतित होने के प्रगतिशीलता व मूल्यों के साथ जोड़ कर पेश किया जा रहा है। भड़ास के यशवंत सिंह की यह पोस्ट आंख खोलती है कि ये जो पतित होने के साथ मूल्य वगैरह की जो लोग बातें कर रहे हैं दरअसल वे एक बार फिर मर्यादा व सभ्यता बनाये रखने वाले लोगों के समर्थन में बोल रहे हैं। इन्हीं मर्यादा व सभ्यता ने हजारों लाखों स्त्रियों को मार डाला है, बेच डाला है, कुएं में कूदने में पर मजबूर किया है, घर में जलाने या जल जाने पर मजबूर किया है। इस मर्यादा और सभ्यता, इस मूल्य व प्रगतिशीलता की ऐसी की तैसी की जानी चाहिए। यशवंत का चोखेरबाली पर प्रकाशित आलेख हू ब हू यहां दिया जा रहा है

यशवंत सिंह
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मनीषा ने जो लिखा, मैं पतित होना चाहती हूं, दरअसल ये एक जोरदार शुरुआत भर है। उन्होंने साहस बंधाया है। खुल जाओ। डरो नहीं। सहमो नहीं। जिन सुखों के साथ जी रही हो और जिनके खोने का ग़म है दरअसल वो कोई सुख नहीं और ये कोई गम नहीं। आप मुश्किलें झेलो पर मस्ती के साथ, मनमर्जी के साथ। इसके बाद वाली पोस्ट में पतनशीलता को एक मूल्य बनाकर और इसे प्रगतिशीलता के साथ जोड़ने की कोशिश की गई है। यह गलत है।

दरअसल, ऐसी ऐतिहासिक गल्तियां करने वाले लोग बाद में हाशिए पर पाए जाते हैं। कैसी प्रगतिशीलता, क्यों प्रगतिशीलता? क्या महिलाओं ने ठेका ले रखा है कि वो एक बड़े मूल्य, उदात्त मूल्य, गंभीर बदलाव को लाने का। इनके लिए पतित होने का क्या मतलब? ये जो शर्तें लगा दी हैं, इससे तो डर जाएगी लड़की। कहा गया है ना...जीना हो गर शर्तों पे तो जीना हमसे ना होगा.....। तो पतित होना दरअसल अपने आप में एक क्रांति है। अपने आप में एक प्रगतिशीलता है। अब प्रगतिशीलता के नाम पर इसमें मूल्य न घुसेड़ो। कि लड़ाई निजी स्पेस की न रह जाए, रिएक्शन भर न रह जाए, चीप किस्म की चीजें हासिल करने तक न रह जाए, रात में घूमने तक न रह जाए, बेडरूम को कंट्रोल करने तक न रह जाए....वगैरह वगैरह....।

मेरे खयाल से, जैसा कि मैंने मनीषा के ब्लाग पर लिखे अपने लंबे कमेंट में कहा भी है कि इन स्त्रियों को अभी खुलने दो, इन्हें चीप होने दो, इन्हें रिएक्ट करने दो, इन्हें साहस बटोरने दो.....। अगर अभी से इफ बट किंतु परंतु होने लगा तो गये काम से।

मेरे कुछ सुझाव हैं, जिस पर अगर आप अमल कर सकती हैं तो ये महान काम होगा.......

1- हर महिला ब्लागर अपने पतन का एलान करे और पतन के लक्षणों की शिनाख्त कराए, जैसा मनीषा ने साहस के साथ लिखा। अरे भइया, लड़कियों को क्यों नहीं टांग फैला के बैठना चाहिए। लड़कियों को क्यों नहीं पुरुषों की तरह ब्लंट, लंठ होना चाहिए....। ये जो सो काल्ड साफ्टनेस, कमनीयता, हूर परी वाली कामनाएं हैं ये सब स्त्री को देवी बनाकर रखने के लिए हैं ताकि उसे एक आम मानव माना ही न जाए। तो आम अपने को एक आम सामान्य बनाओ, खुलो, लिखो, जैसा कि हम भड़ासी लिखते कहते करते हैं।

2- सबने अपने जीवन में प्रेम करते हैं, कई बार प्रेम का इजाहर नहीं हो पाता। कई बार इजहार तो हो जाता है पर साथ नहीं जी पाते....ढेरों शेड्स हैं। लेकिन कोई लड़की अपनी प्रेम कहानी बताने से डरती है क्योंकि उसे अपने पति, प्रेमी के नाराज हो जाने का डर रहता है। अमां यार, नाराज होने दो इन्हें.....। ये जायेंगे साले तो कई और आयेंगे। साथ वो रहेगा जो सब जानने के बाद भी सहज रहेगा। तो जीते जी अपनी प्रेमकहानियों को शब्द दो। भले नाम वाम बदल दो।

3- कुछ गंदे कामों, पतित कृत्य का उल्लेख करो। ये क्या हो सकता है, इसे आप देखो।

4- महिलाओं लड़कियों का एक ई मेल डाटाबेस बनाइए और उन्हें रोजाना इस बात के लिए प्रमोट करिए कि वो खुलें। चोखेरबाली पर जो चल रहा है, उसे मेल के रूप में उन्हें भेजा जाए।

5- छात्राओं को विशेष तौर पर इस ब्लाग से जोड़ा जाए क्योंकि नई पीढ़ी हमेशा क्रांतिकारी होती है और उसे अपने अनुरूप ढालने में ज्यादा मुश्किल नहीं होतीं। उन्हें चोखेरबाली में लिखने का पूरा मौका दिया जाए।

6- एक ऐसा ब्लाग बनाएं जो अनाम हों, वहां हर लड़की अनाम हो और जो चाहे वो लिखे, उसे सीधे पोस्ट करने की छूट हो, भड़ास की तरह, ताकि आप लोग गंभीरता व मूल्यों के आवरण में जिन चीजों को कहने में हिचक रही हैं, जिस युद्ध को टाल रही हैं, इस समाज के खिलाफ जिस एक अंतिम धक्के को लगाने से डर रही हैं, वो सब शुरू हो जाए।

जय चोखेरबालियां
यशवंत

(चोखेरबाली ब्लाग से साभार)

प्रेम के नाम पर सेक्स के लिए फंसाई जाती हैं लड़कियां

ये मेरा अनुभव रहा है। कई ब्वाय फ्रेंड्स ने बताया भी है। लड़कियों को बेसिकली भावुक, इमोशनल मानते हुए उनके साथ प्रेम का नाटक किया जाता है, बिलकुल फिल्मी स्टाइल में। जब उनके दिल में कुछ कुछ होने लगता है तो फिर उन्हें मिलने जुलने के लिए राजी किया जाता है। गिफ्ट वगैरह दिए लिए जाते हैं। और फिर तलाश की जाती है एकांत जगह की जहां शुरू होती है छेड़छाड़ फिर कुछ प्यार से कुछ जोरजबरदस्ती से कर दी जाती है सेक्स की शुरुआत।

इसमें गलत कुछ नहीं है लेकिन बेवकूफ लड़कियों को जानना चाहिए कि ये जो सारा प्यार का नाटक ये मजनू कर रहे हैं दरअसल और कुछ नहीं बल्कि उनका शरीर पाने की तमन्ना के लिए कर रहे हैं। सेक्स करो, खबू करो, लड़कों के साथ घूमो, उनके जैसा सोचा, बोलो....कोई दिक्कत नहीं। दिक्कत तब है जब कई लड़कियां प्यार के नाटक से शुरू हुए रिश्ते के सेक्स के बाद लड़कों द्वारा खत्म कर लिए जाने से दुखी होकर आत्महत्या की मानसिकता में आ जाती हैं। दिल टूट जाने को लेकर रोती रहती हैं। इन सभी को जानना चाहिए कि लड़के सिर्फ और सिर्फ उनका शरीर पाने के लिए प्यार का नाटक करते हैं। अगर सेक्स करने के लिए प्यार करना हो तब तो ये रिश्ता कबूलो कि चलो बच्चों प्यार प्यार का नाटक करते हुए सेक्स सेक्स खेलते हैं। अगर ये सब करने में कोई दिलचस्पी नहीं तो मजनूओं को इग्नोर किये रहो या फिर उन्हें घर वालों से या पुलिस वालों से या खुद ही अपनी जूतियों से लतियाते रहो।
गंदी

वो बेचारी तो जान भी नहीं पाती कि सेक्स होता क्या है

गांव में मेरे पड़ोस में एक परिवार है। वहां नई बहू आई। परिवार काफी बड़ा होने से उस बहू के पति देर रात घर में आते और बिलकुल मुंह अंधेरे निकल जाते घर से। नई बहू जब पुरानी हो गई तो मैंने उसे छेड़ना शुरू कर दिया। बताओ, बताओ। सुहागरात में क्या हुआ। कैसे हुआ। वो बिचारी शुरू में शरमाती, सकुचाती रही। बाद में वो मुझसे खुलने लगी। उससे बातचीत के बाद मुझे एक चीज समझ में आई की उसने अभी तक सेक्स को जिया ही नहीं। उनके पतिदेव आते और कुछ कुछ करके चले जाते। वो बेचारी जब तक समझ पाती कि ये हो क्या रहा है, पतिदेव घर से जा चुके होते। उस स्त्री को बाद में सेक्स में कोई रुचि नहीं रही क्योंकि सेक्स उसके लिए एक बेहद लिजलिजा अनुभव होता था जिसमें सिर्फ उसके कपड़े खराब हो जाते थे। वो सेक्स से दूर रहने लगी। मैंने महसूस किया कि उसके अंदर सेक्स की नीड थी लेकिन जिस संयुक्त परिवार में वो रह रही थी वहां सेक्स के लिए कोई मौका न था। पूरे दिन उसे काम में पड़े रहना पड़ता था। घर बार चौका चूल्हा बड़े छोटों का सेवा टहल, ये सब करते कराते आधी रात, और फिर वो बेहोश होकर सो जाती। इसी बीच पतिदेव आकर कुछ कर जाते। जिसे वो आधे जगे आधे सोये ही झेलती रहती और उनके जल्दी जाने का इंतजार करती। उनके जाते ही वो पैर फैलाकर सो जाती, जैसे सदियों से उसकी नींद पूरी न हुई हो।

क्या लाइफ है हम लोगों की यार। अगर सेक्स को न जी सके, न महसूस कर सके तो क्या कर सकती हैं हम सब। कोई सुख नहीं उठा सकतीं। सेक्स दरअसल एक प्रतीक है। हमें सेक्स में सुख के लिए लड़ना चाहिए तभी हम दूसरी लड़ाइयां लड़ सकते हैं। अगर हम सेक्स में समझौता कर लेते हैं तो बाकी कहां कहां हमसे समझौता करने के लिए कहा जायेगा, पता नहीं।

सेक्स क्रांति स्त्रियों के जीवन को बदलने का शुरूवात भर है। भारत में तो इसकी जबरदस्त जरूरत है। स्त्रियां जब अपने सेक्स के सुख के लिए लड़ेंगी, अड़ेंगी तो आदमी ससुरे खुद ही भागेंगे पीछे। उन्हें हमारा प्रभाव व प्रभुत्व स्वीकारना पड़ेगा। लेकिन यह तभी होगा जब हर स्त्री अपने सेक्सुअल लाइफ के प्रति सेंसेटिव हो और इसे वो पूरा इंज्वाय करे, इस लाइफ की चाभी अपने हाथ में रखे। हमेशा एक्टिव पोजीशन में रहे और यह एहसास कराये कि दरअसल तुममें तो कम, हमारे में ज्यादा सेक्स भरा है और कायदे से हमें ही उपर होना चाहिए, सदा के लिए और तुम्हें नीचे, हमेशा के लिए......बेडरूम में भी, परिवार में भी, समाज में भी, देश में भी, विदेश में भी....
गंदी

2/16/2008

एक और सहेली गंदी बनी

लेखा प्रकाश, मेरी सहेली का बदला नाम है। जब उससे एक दिन इस ब्लाग के बारे में बताया तो वह एकदम से चौंक गई। उसे बड़ा अच्छा लगा यह ब्लाग। उसने भी इसमें लिखने की इच्छा जताई। मैंने उसे इसका मेंबर बना लिया। लेखा प्रकाश अब इस ब्लाग में लिखा करेगी।

देखते हैं कि कितनी लड़कियां इस गंदी लड़की का हिस्सा बनना चाहेंगी। बस, एक अनुरोध है लड़कियों से, स्त्रियों से, वे मेंबर बनें तो नकली नाम से बनें ताकि उनके जीवन में किसी तरह की दिक्कत न आ पाए और वो खुलकर अपनी बात रख भी सकें।
गंदी

ये कथित प्रगतिशील ही हैं यौन शुचिता के सबसे बड़े लठैत

एक मुहलगे लड़के दोस्त ने पूछा- लड़कियां कम कपड़े क्यों पहनती हैं, मतलब वो नाभि, पेट आदि दिखाती हैं। मैंने कहा, इसलिए क्योंकि तेरे दिमाग में जो जहर घुसा है, उसके देह को लेकर वो थोड़ा कम हो और तू जान सके कि उसका भी शरीर वैसा ही होता है जैसा तेरा होता है। वही मांस, वही हड्डियां, वही सब कुछ। बस बच्चा पैदा करने के लिए भगवान ने एक अतिरिक्त सुविधा दे रखी है जिसके लिए तुम लोग पागल रहते हो और लड़कियों की जान ले लेतो हो। वो लड़का एक पल को सकपकाया, फिर बोला.....अब तो तुम लोगों का जमाना आ गया है। जहां देखो महिलओं के हित में बातें होती हैं। मैंने कहा, हां, अभी तो वो दिन आएगा जब लड़कियां मिलकर, घेर घेर कर लड़कों की इज्जत लूटेंगी। जब तक वो दौर नहीं आएगा तब तक लड़कियों-महिलाओं का जमाना आना नहीं माना जाएगा। अभी तो शुरुवात है, देखतो रहो। अब जो लड़कियां आ रही हैं, वो दिल-दिमाग से बिलकुल आक्रामक, तेज तर्रार, दूरदर्शी और ज्ञानवान हैं। इन्हें अपने देह की फिक्र नहीं रहती क्योंकि ये जानती हैं कि ये देह तो बस उसी तरह है जैसे बाकी सबकी देह होती है, लेकिन सारा खेल तो दिमाग का है। देह से उबरने के लिए, उबारने के लिए जरूरी है कि दिमाग का भरपूर इस्तेमाल किया जाए। ये लड़कियों की नई जनरेशन इसी दिमाग का इस्तेमाल कर देह के प्रति भूखे लोगों को हरा रही हैं।

तुम भी, सब करो, लेकिन दिमाग का इस्तेमाल करो। सफल हो जाओ, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो जाओ, बाकी देखो, जमाना किस तरह तुम्हारे कदमों को चूमेगा। लड़कियों की सबसे बड़ी जरूरत है उनका आत्मनिर्भर होना। अगर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता नहीं है तो पुरुष न सिर्फ दोयम दर्जे पर रखेगा, बल्कि देह के प्रति सावधान रखेगा, देह को नोचेगा और देह दिखने पर पीटेगा। ये दोगले पुरुष सिर्फ बातें करते हैं महिला तरक्की की लेकिन ये अपने घरों में यौन शुचिता के सबसे बड़े लठैत हैं।

गंदी लड़कियों, सहेलियों, साथिनों, दोस्तों, आप लोग दिमाग लगाएं, लड़ाएं, मिलाएं और इन पुरुषों के गंदेपने से निपटने के लिए इनके जैसे गंदे बन जाओ। इन सूअरों को मूर्ख बनाते रहो, इनका इस्तेमाल करते रहो और खुद आगे बढ़ते रहो। लेकिन ध्यान रहे, इस प्रक्रिया में कहीं ये तुम्हारा इस्तेमाल न कर ले। जो करो, अपने दिमाग का इस्तेमाल करके करो। योनि की सलामती और छुईमुई बनकर रहना, कमनीयता, स्त्रैण....ये सब बातें बकवास हैं....। इनका कोई मतलब नहीं। बिना गंदी बने, अच्छा नहीं बना जा सकता।
तुम्हारी
गंदी

2/15/2008

लड़की माने स्तन और योनि

ऐसा क्यों होता है कि कोई लड़का या पुरुष अगर किसी लड़की या स्त्री के प्रति सोचना शुरू करता है तो उसके अवचेतन में सबसे पहले लड़की के स्तन व योनि ही आते हैं। आशय ये है कि लड़का लड़की को लेकर सबसे पहले सेक्स के बारे में ही क्यों सोचता है, उसकी कोशिश यह क्यों रहती है कि वह लड़की को बस कब पा जाये अकेले में और उसकी राजी खुशी या विरोध इनकार के बाद भी उससे वह सब कर ले जो उसके मन में चल रहा है। मैंने इन सवालों के जवाब तलाशने की बहुत कोशिश की, कई लड़कों से भी बात की पर कहीं समझ में नहीं आया। ये जल्दबाज तो इतने होते हैं लेकिन जब वाकई इनके साथ मर्जी से सेक्स करने को तैयार हो जाओ तो ये इतनी जल्दी शांत हो जाते हैं कि पूछो मत। मतलब पहले जल्दबाजी और बाद में चूहा बनकर बैठ गए। ये हड़बड़ी क्या पुरुष में प्राकृतिक होती है। कहा तो यही जाता है कि ये प्राकृतिक होती है लेकिन मेरा मानना ये है कि ये हड़बड़ी इसलिए होती है क्योंकि समाज ने लड़कियों को अच्छी लड़कियां बनाकर रखा है और उन्हें योनि शुचिता को लेकर इतना सावधान किया गया होता है, इतना डरा दिया गया होता है, इतने नियम कानून बना दिया गया होता है कि लड़की सेक्स के बारे में सोचते ही डरने लगती है। उसे यह पाप, अपराध और जीवन की अंत की तरह समझ में आता है। उधर लड़कों और पुरुषों को सांड़ की तरह रखा जाता है, जहां जी चाहे मुंह मार लोग। तो शायद इन्ही दोहरे मानदंडों की वजह से लड़की हमेशा एक सेक्स सिंबल बनकर रह जाती है।

यह जो पुरुष और लड़की की मानसिकता में अंतर है वह खत्म तभी हो सकता है जब लड़की भी एक सांड़ की तरह हो जाए। उसे भी छूट दी जाए कि वो जहां चाहे मुंह मार ले और समाज या परिवार उसका बाल बांका भी न कर पाए। क्यों, सांड़ क्यों पुरुष क्यों हो सकता। लड़की क्यों नहीं हो सकती। उसे भी खुलेआम लड़के पटाने और उनको पेलने और फिर उन्हें लातमारकर छोड़ देने का हक है। लेकिन इतनी साहस वाली लड़कियों को समाज जीने देगा। क्योंकि समाज इन सूअरों पुरुषों द्वारा ही तो बनाया गया है। बहन ने अगर अंतरजातीय प्रेम भर कर लिया तो भाई उसे मार डालता है। आए दिन ऐसी खबरें पश्चिमी यूपी और देश के अन्य हिस्सों से मिलती रहती है। लेकिन भाई कितनी लड़कियों के पीछे मतवाला हुआ पड़ा है, बहन इसके लिए उसे कभी नहीं टोक सकती।

कितना गंदा, कितना कुत्ता और कितना सुअरपने का समाज और सभ्यता है हमारी जहां मनुष्य के बीच ही दो तरह के सामाजिक नियम, मानदंड, सोच, मानसिकता और व्यवहार तय किया गया है।

थू है पुरुषों पर, समाज पर और इस देश पर। लड़कियों, जल्द से जल्द गंदी बनो। बोल्ड बनो। जो जी चाहे करो, वो चाहे गलत ही क्यों न हो क्योंकि अगर अच्छे बुरे चक्करों में पड़ी रही तो ये कुत्ते पुरुष कई सदियों तक हमें यूं ही दोयम दर्जे का बनाकर रक्खे रहेंगे और हमको सिवाय एक योनि व स्तन की गुडि़या समझने के, और कुछ नहीं समझेंगे।
गंदी

2/12/2008

थोड़ी सी जो पी शराब...

हास्टल में रहते हुए अक्सर अपने मन का जीने को मिलता है। जब जीने को मिले तो जी लेना चाहिए। कल किसने देखा है। और इसी कड़ी में एक शाम की बात है कि हम तीन सहेलियों ने ड्रिंक करने का प्रोग्राम बनाया। एक दुकान से रायल स्टैग का हाफ बाटल खरीदने के बाद चिकन तंदूरी और दूसरे स्नैक्स लिए। रात में पीना शुरू किया। एक सहेली तो पहली बार पी रहे थी सो उसे पहले ही पैग के बाद अच्छा खासा नशा हो गया। सबने ड्रिंक को खूब इंज्वाय किया। मैंने तीन पैग पिये। फिर शुरू हुआ गीत संगीत का सिलसिला। बातों बातों में एक रोने लगी। उसके ब्वायफ्रेंड ने उसे बिच कह दिया था। उसे हमने समझाया, इन कुत्तों के लिए क्यों रोती हो। हमारी दिक्कत यही है कि हम भावुक ज्यादा होते हैं, दूसरों पर भरोसा जल्दी कर लेते हैं। दुनिया ऐसी नहीं है। खुद की जिंदगी अपने हाथों से लिखो। दूसरो के कहने सुनने के आधार पर अपनी जिंदगी की दशा-दिशा को न बदलो और न बनाओ। पहले खुद तय करना चाहिए कि हमें करना क्या है, हमारे लायक कौन है, हमारी पर्सनाल्टी कैसी है.....।

सुबह उठकर सबने कहा, कल की रात बहुत अच्छी गुजरी। ये बातें आप लोगों को खराब लगेगी कि लड़कियां शराब पीती हैं। पर क्यों न पिये। पीने का सुख क्या मर्द ही उठाएंगे। हम गंदी लड़कियां चाहती हैं अपने तरीके से जीना।

2/07/2008

तुम्हारी फैन हूं मैं तस्लीमा

तस्लीमा नसरीन की फैन थी, हूं और रहूंगी। एक स्त्री किस तरह मर्दों से लड़ सकती है, कितनी आजादखयाली से बोल, लिख और जी सकती है, तस्लीमा ने अपने लेखन व जीवन से यह सब साबित किया है। और उन्हें सच व साफ कहने के खतरे भी लगातार झेलने पड़े हैं। सूअरों और सांड़ों के फतवों-फरमानों के खौफनाक साये में जीना भी पड़ रहा है। पर इससे तस्लीमा, तुम डरना नहीं। तुम्हारे जीवन, लेखन व स्टाइल से हम सब चुपचाप सीख रही हैं, बोलना, जीना और लड़ना। हममें तुम्हारे जितना शायद साहस नहीं कि खुलेआम अपनी पर्सनाल्टी सबके सामने लाकर नंगा नंगा कड़वा सच बोल सकें, अब भी हम डरती और सहमती हैं, सूअर प्रधान समाज से। पर मैं तो तुम्हारी सदा से फैन रही हूं, और चाहूंगी कि इस ब्लाग के जरिये तुम्हारे विचारों को बाकी लड़कियों के सामने ला सकूं जिससे वे स्वाभिमान से और आजादी से जीना सीख सकें, न कि अच्छी लड़की बनने के चक्कर में एक बेहद घटिया और गंदा जीवन जीने को मजबूर हों। उससे अच्छा तो यही होगा कि हम मस्त, आजाद, स्वाभिमान के साथ जिएं, भले ये सूअर हमें गंदी लड़की कहें।
गंदी

क्यों बनी मैं गंदी

पड़ोस में एक आंटी थीं। कितनी अच्छी थीं। मैं उस समय आठवीं में थीं। आंटी के व्यवहार की कितनी तारीफ होती थी। पूरे मोहल्ले की सबसे अच्छी स्त्री थीं वो। सब उनकी वाह वाह करते। वे एक पल भी नहीं आराम करतीं। ढेर सारा काम करतीं। बच्चे, पति, पड़ोस, घर, रिश्तेदार, मेहमान....सबके लिए हमेशा मुस्कराते हुए हाजिर। सिर से साड़ी नहीं नीचे गिरती।

एक दिन खबर मिली की वो मर गईं। उनका पति गिरफ्तार हो गया। बाद में पता चला कि रात में वो अपने पति के हाथों काफी मार खातीं। वो शराब पीकर आते और कमरे बंद कर लेते। म्यूजिक के तेज साउंड में वे घर के अंदर पत्नी को इतना प्रताड़ित करते कि बताया नहीं जा सकता। मैंने पता करने की कोशिश की कि आखिर ऐसा वो क्यों करते। मालूम हुआ कि उन्हें उनकी पत्नी ने अपने शादी से पहले के एकमात्र प्रेम के बारे में बता दिया था। उसके बाद से वे उन पर शक करते। उनके चाल चरित्र पर हमेशा ताना मारते।

ऐसी ही किसी लड़ाई में उन्होंने इतना तेज और इतनी देर तक आंटी का गला दबाया कि वो मर गईं। आंटी चाहती तों घर के अंदर के झगड़े को बाहर ले जा सकती थीं, अपने रिश्तेदारों, मायके वालों को बता सकती थी पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्हें डर था कि ऐसा करने से उनकी अच्छी स्त्री वाली छवि खराब हो सकती थी। वो हमेशा हम लोगों को सबका प्रिय बनकर रहने की सलाह देती रहती थीं।

उनकी मौत के बाद पति द्वारा उन पर ढाए जाने वाले जुल्म का कहानी मालूम हुई। ऐसी ऐसी कहानियां जिसमें कुछ झूठी भी हो सकती हैं, जिसे सुनकर आप दहल जाएं। तभी से शांत और बुद्धिमान दिखने वाले पुरुषों से घृणा हो गई। अंकल हमेशा सीरियस व समझदार किस्म के दिखते। पर हम लोगों को यह नहीं पता था कि उनके अंदर एक राक्षस है। उन्होंने अपने ही हाथों अपनी अच्छी पत्नी को कत्ल कर दिया।

भगवान, किसी को यह दिन न दिखाना। इससे अच्छा तो बुरी बनकर रहना है। झगड़ा हो तो सबके सामने हो, दरवाजे के अंदर न हो वरना बंद दरवाजे में जान भी जा सकती है।

गंदी

सुनो सूअरों, ये गंदी लड़की है

बहुत दिनों से ब्लाग व्लाग पढ़ रही थी। सोच रही थी अपना भी एक कोना ब्लाग में होना चाहिए। पहले भड़ास में मेंबर बनी। वहां मर्दों की भीड़ में खुद को डरी डरी और केवल मूकदर्शक पाती थी। फिर उससे अलग हो गई। सोचने लगी क्यों नहीं मैं जैसी हूं, वैसी लड़कियों-स्त्रियों के लिए एक ब्लाग बना लूं। तो आज यह ब्लाग बना डाला। गंदी लड़की नाम से। और इसमें गंदी नाम से मैं लिखूंगी।

थोड़ा अपने बारे में बता दूं। दिल्ली में हूं, छात्रा हूं। हायर एजुकेशन में। कोई टेंशन नहीं है। मजे में जी रही हूं, अपनी स्टाइल में। अपनी मर्जी से। जाने कितने प्रेमी बदल दिए। जो सूअर गुर्राता या टर्राता है या नखरे दिखाता है, या जिस सूअर की शक्ल खराब लगने लगती है, उसे चार गाली देकर, लात मार कर भगा देती हूं। जब तक जी चाहता है इन मर्दों से खेलती हूं, मूर्ख बनाती हूं, कुत्ते की तरह उन्हें रखती हूं। हाथ पैर जुड़वाती हूं और जब जी भर जाता है, तब जा बे कुत्ते.....के अंदाज में दुर दुर करके भगा देती हूं।

बड़े आराम से तुम ससुरों-सूअरों मुझे यह बात कह सकते हो कि ये तो गंदी है, व्यभिचारी है, रंडी है, वेश्या है, बदचलन है, जाने क्या क्या है....पर इन शब्दों का अब कोई मतलब नहीं रहा। ये सब तुम लोग हो क्योंकि हम औरतें, लड़कियां कभी रंडी, वेश्या, बदचलन और व्यभिचारी हो ही नहीं सकतीं। ये हमेशा से पुरुष और मर्द रहे हैं और आज भी हैं।

हां, हम गंदी लड़कियां जरूर हैं जो अपने हिसाब से जीती हैं और वो सब कुछ सोचती और करती हैं जिसे तुम सब मर्यादा के दायरे से बाहर बताते हो। किसी की चाल या जाल में फंसती नहीं बल्कि फांसती हैं। हम बुरी और गंदी लड़कियां हैं।

मैं सभी स्त्रियों की बात नहीं कर रही। दिक्कतें अभी बहुत हैं। पर मैं अपने जैसी लड़कियों, स्त्रियों की बात कर रही हूं जो अपने अंदाज़ में जीने की तमन्ना रखती हैं और जीती भी हैं। मर्दों-पुरुषों को दोयम बनाकर रखती हैं। बराबरी पर इसलिए नहीं रखतीं क्योंकि बराबरी पर रखने पर ये एक दर्जे और उपर जाना चाहते हैं और स्त्री बेचारी फिर दोयम हो जाती है। इसलिए इन्हें मैं हमेशा दोयम दर्जे पर रखती हूं। सारे काम कराती हूं, सारे नखरे दिखाती हूं और उसके बाद चार गाली भी देती हूं।

दिमाग मेरे पास है। पढ़ाई के लिए सरकार से पैसे मिल जाते हैं और घर से पापा भी खूब देते हैं, इसलिए पैसे की कोई दिक्कत नहीं। तो इन सूअर पुरुषों को अपने से नीचे रखने में जाता क्या है, उलटे मजा आता है। लगता है, देखो, इन बेचारों को, यही तो हम लोगों के बास बन जाते हैं और जीवन के भाग्यविधाता भी हो जाते हैं। घूंसे, लात, ताने, बंदिशें, उलाहने, किचन, बच्चे, परिवार, मर्यादा....इन्हीं सब के बीच अभी अधिकतर लड़कियों-स्त्रियों का जीवन बीत रहा है पर हम जैसी गंदी लड़कियां चाहती हैं कि सभी लड़कियां और स्त्रियां गंदी हो जाएं ताकि ये सुअर हमसे कोई उम्मीद ही न कर सकें।

बहुत कुछ लिखना है इस गंदी लड़की को, जितना अब तक झेला है और जितना अब तक दिया है। इस ब्लाग को बनाकर मुझे बड़ा संतोष हो रहा है।

मैं असली नाम से इसलिए नहीं लिख रही हूं क्योंकि सुअरों का थोड़ा डर है। कल को बवाल हो सकता है, बदनामी हो सकती है, शिकायत घर पहुंच सकती है, मम्मी-पापा को मेरी इस हरकत के बारे में बताया जा सकता है। इसलिए मैं चाहती हूं कि गंदी लड़कियों को गुमनाम नाम से ही इस ब्लाग पर इकट्ठी करूं और फिर अपनी अपनी गंदी बातें इसमें शेयर किया जाए। ये गंदी बातें उन सुअरों के बारे में होगी जिन्हें हम अपनी जूतियों पे रखते हैं। आगे भी ज़िंदगी में किसी सूअर की गुलामी करने के बजाय सुअरों को अपना गुलाम बनाकर रखने का इरादा है।

कोशिश है कि गंदी लड़कियों की बातें से अच्छी स्त्रियों और अच्छी लड़कियां गंदी बनने को प्रेरित हों ताकि सुअरों को शऊर सिखाया जा सके।

जो भी लड़की गंदी बनना चाहती है, गंदी बातें बताना चाहती है, वो यहां जरूर आए और बताए।

मैं हूं
गंदी